शनिवार, 17 अप्रैल 2010

संस्कृत-सूक्त

~~~~शांति-पाठ:~~~~
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ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु ।
मा विद्विषावहै ।


ॐ शांति: ! शांति: !! शान्ति: !!!
अर्थ : वह (परमात्मा) हम दोनों (आचार्य एवं शिष्य) की साथ-साथ रक्षा करे । हम दोनों का साथ-साथ ही पालन करे । हम साथ-साथ विद्याप्राप्ति में सामर्थ्यवान हों । हमारा अध्ययन तेजयुक्त हो । हम द्वेषरहित हों ।
त्रिविध (भौतिक, दैविक एवं आध्यात्मिक) ताप का शमन हो ।

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4 टिप्‍पणियां:

Vinay Kumar Vaidya ने कहा…

यह ब्लॉग संस्कृत के वैदिक वाङ्मय के अध्ययन के लिए प्रारंभ किया गया है ।

just explore me ने कहा…

बेहद गूढ़ बाते है किन्तु अर्थ जान लेने के बाद और उनको जीवन में उतार लेने के बाद उतनी ही सरल है ! बेहद प्रभावित रचना के लिए दोनों हाथो को जोड़कर साधुवाद स्वीकार करे इस अज्ञानी विनय की तरफ से एक ज्ञानी विनय जी को !

Vinay Kumar Vaidya ने कहा…

Dear Friend,
'Just explore me ' !!
सत्य परम सरल है । बुद्धि के गतिशील होने के बाद ही
मैं-विचार तथा जगत् की पृथकता सत्य लगने लगती है ।
अतः ‌विनय विनय में दिखलाई देनेवाला भेद कल्पित ही है ।
स्वागत है आपका ।

Rahul Singh ने कहा…

पढ़ा, आगे की प्रतीक्षा है.