।।भवं भवानी सहितं नमामि।।
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न तातो न माता न बन्धुर्न भ्राता।
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव।
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।१।।
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हे भवानी! पिता, माता, भाई, दाता, पुत्र, पुत्री, भृत्य, स्वामी, स्त्री, विद्या और वृत्ति---इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे देवि! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो!।।१।।
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1. No father, no mother, no friend, no brother,
No son, no daughter, no servant, no master,
No wife, no skill, nor occupation, I have!
You alone are my retreat, whole and sole!
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भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः।
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहम्।
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।२।।
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मैं अपार भवसागर में पड़ा हुआ हूँ, महान् दुःखों से भयभीत हूँ, कामी, लोभी, मतवाला तथा घृणायोग्य संसार के बन्धनों में बँधा हुआ हूँ, हे भवानि ! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो!।।२।।
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2. Fallen into this ocean endless,
That is this world miserable,
Frightened of the great calamities,
Full of lust, greed, passion; -I'm!
Arrested into the shackles,
Of this despicable world.
Now, O Bhavani! O Great Mother Divine!
You alone are my retreat, Whole and sole!
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न जानामि ध्यानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्।
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।३।।
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हे देवि! मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ही ध्यानमार्ग का ही मुझे पता है, तन्त्र और स्तोत्र-मन्त्रों का भी मुझे ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदि की क्रियाओं से तो मैं एकदम कोरा हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो!।।३।।
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3. O Mother Celestial!
I Don't know how to donate,
Neither I do, how to meditate,
Nor know the practice of tantra:
Reciting of the hymn or mantra!
Nor do I how to pray and worship,
Nor the secret, rirual of the nyaasa,
You alone are my retreat, Whole and sole!
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न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातः
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि!।।४।।
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न पुण्य जानता हूँ न तो मुझे तीर्थ का, और न मुक्ति का पता है, न प्रलय का! हे मातः! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञात नहीं है, हे भवानि! अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो।।४।।
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4. Neither I know the holy, virtue,
Nor those pilgrims sacred,
Ignorant of the liberation,
I'm also of the deluge, dissolution,
O Mother Divine!
Neither I know the devotion,
Nor do I observe the discipline;
O Bhavani, O Mother Divine!
You are alone my retreat, Whole and sole!
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कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।५।।
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मैं कुकर्मी, बुरी संगति में रहनेवाला, दुर्बुद्धि दुष्टदास, कुलोचित सदाचार से हीन, दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि रखनेवाला और सदा दुर्वचन बोलनेवाला हूँ, हे भवानि! मुझ अधम की एकमात्र तुम्हीं गति हो ।।५।।
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5. Evil, wicked, living in abominable company,
Il-witted, slave to the evil,
Devoid of the customes of family and clan,
Indulging in the dirty, unholy practices,
Having evil eyes, speaking dirty tongue,
O Bhavani, Of this destitute, wretched me,
You are alone the retreat, Whole and sole!
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प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।६।।
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मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सुरेश, सूर्य और चन्द्रमा, आदि किसी को भी नहीं जानता! हे शरणदात्री भवानि ! हे देवि! मेरी एकमात्र शरण तुम्हीं हो!।।६।।
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6. Brahma, Vishnu Mahesha or Indra,
The Sun-Lord, The Moon-God, neither,
Other than you, I know no one else,
I'm ever so enshrined in your feet;
You are the retreat alone, Whole and sole!
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विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।।७।।
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हे शरण्ये! तुम विवाद, विषाद, प्रमाद, परदेश, जल, अनल, पर्वत, वन तथा शत्रुओं के मध्य में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानि! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।।७।।
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7. O Shelter Supreme! All Through Quarrels,
In grief, sorrow, in lethargy, and in the lands not my own, In waters, fires, in mountains, In the forests and in my enemies and foe!
Protect me always O Mother Great!
You are the retreat alone, Whole and sole!
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अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदाजाड्यवक्त्रः।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।८।।
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हे भवानि! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी, अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूँगा, विपद्ग्रस्त और नष्ट हूँ, अब तुम्हीं एकमात्र मेरी गति हो।।८।।
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8. O Bhavani! O Mother Divine!
Always I have been, ever so, Orphan,
Made so destitute and wretched,
Torn and worn out, assailed by age,
So Deceased, weak and dumb,
Victim of misfortune, distress, destroyed,
O Bhavani! At this juncture,
You are alone the retreat Whole and sole!
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Who Is "Bhavaani?"
She is the Mother Principle, the Intelligence, where from emanates and manifests the whole existence in all kinds and forms.
Our personal consciousness is but a hint to point out the Reality that She is.
"Bhavam Bhavaanee-sahitam namaami"
Is the aphorism (mantra), where Bhava is the Father-Principle and Bhavaanee is the Mother Principle.
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Dedicated to भवानी!
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~~ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं भवान्याष्टकं सम्पूर्णम्।। ~~
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