विचार और विचारक (Thought and Thinker)
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श्री जे.कृष्णमूर्ति के साहित्य का यह एक विशिष्ट आधार-बिन्दु, अथवा सूत्र है।
जब मैंने संत ज्ञानेश्वर-कृत अमृतानुभव / अनुभवामृत को हिन्दी तथा संस्कृत में अनूदित (अनु-उदित) करने का प्रयास किया तो एक दिन मेरा ध्यान इस तथ्य पर गया कि विचार शक्ति है, और विचारकर्ता उस शक्ति का एक रूप। अर्थात् विचार ही विचारक है। दूसरी ओर, विचारक (की मान्यता / कल्पना) भी विचार ही तो है। विचारक और विचार जिस भान / बोध (awareness) में व्यक्त और अव्यक्त होते हैं वह भान / बोध, Intelligence विचारगम्य नहीं है। इसलिए विचार उसका आकलन नहीं कर सकता।
इस प्रकार से संत ज्ञानेश्वर ने शिव-शक्ति समावेशन के अध्याय की रचना के माध्यम से जिस शैली में शक्ति और शिव के अनन्य होने के सत्य का जो वर्णन किया, वह अपने आपमें अनूठा और मर्मग्राह्य है, जबकि श्री जे कृष्णमूर्ति ने 'विचार और विचारक' के आधार पर जिस शैली में जो कुछ भी कहा, उसे किसने और कितना समझा होगा यह तो उसे ही पता होगा।
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आज वर्षों बाद पुनः मेरे अपने इस पोस्ट पर मेरा ध्यान गया तो आश्चर्य हुआ।
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शिव-शक्ति समावेशन-नाम प्रथमोऽध्याय
कृपया इसे इसी ब्लॉग के 31 अगस्त 2012 के मेरे पोस्ट में देखिए!
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